त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: |
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् || 21||
त्रिविधम्–तीन प्रकार का; नरकस्य-नरक में; इदम् यह; द्वारम् द्वार; नाशनम् विनाश;आत्मन:-आत्मा का; कामः-काम, क्रोध:-क्रोध; तथा-और; लोभ:-लोभ; तस्मात्-इसलिए; एतत्-उन; त्रयम्-तीनों को; त्यजेत्-त्याग देना चाहिए।
BG 16.21: काम, क्रोध और लोभ जीवात्मा को नरक की ओर ले जाने वाले तीन द्वार हैं इसलिए सबको इनका त्याग करना चाहिए।
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श्रीकृष्ण अब आसुरी प्रवृत्ति के मूल कारणों का वर्णन करते हैं तथा काम, क्रोध और लोभ को इसमें पारगणित करते हैं। इससे पहले श्लोक 3.36 में अर्जुन ने पूछा था कि लोग न चाहते हुए भी पाप करने के लिए क्यों प्रेरित होते हैं? ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें बलपूर्वक पाप कर्मों में लगाया जाता है। श्रीकृष्ण उत्तर देते हैं कि यह लोभ ही है जो बाद में क्रोध में परिवर्तित हो जाती है और यह हमारा सर्वनाश करने वाली शत्रु है। श्लोक 2.62 की टिप्पणी में किए गए वर्णन के अनुसार लोभ काममें भी परिवर्तित होता है। इस प्रकार काम, क्रोध और लोभ ही वो आधार हैं जहाँ से आसुरी गुण विकसित होते हैं। ये मन में कटुता उत्पन्न करते हैं और इसे अन्य सभी अवगुणों के लिए उपयुक्त स्थान बनाते हैं। परिणामस्वरूप श्रीकृष्ण इन्हें नरक के द्वार के रूप में चित्रित करते हैं और अपने विनाश से बचने के लिए इनसे दूर रहने का उपदेश देते हैं। आत्मकल्याण के इच्छुक लोगों को इन तीनों से दूर रहना चाहिए।